
हल्द्वानी: जानकारी के अभाव जंगली मशरूम जान ले रहा है और ये बेहद कम लोग जानते हैं कि दुनिया भर में पैदा होने वाले मशरूम की प्रजातियों में सिर्फ 18 फीसद ही खाने लायक होती है। ऐसे में जंगल में पैदा होने वाला मशरूम न ही खाया जाए तो बेहतर है। पुलिस ने भी अब लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठा लिया है। आईजी रिद्धिम अग्रवाल के निर्देश पर पुलिस ने पहाड़ी जिलों में गांव-गांव में मुनादी शुरू करा दी है।
कुमाऊं में बीते कुछ माह के भीतर जंगली मशरूम और लिंगुड़ा खाने के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में तीन लोगों की मौत हो गई और कुछ लोग बीमार भी हुए हैं। जंगली मशरूम के सेवन से पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी निवासी लोकगायक गणेश मर्तोलिया की सगी बहन और नानी की मौत हो गई थी। रानीखेत में एक महिला की जहरीले लिंगुड़ा के सेवन मौत हुई थी। बागेश्वर में भी जंगली मशरूम के सेवन से बीते दिनों दो लोग बीमार हुए और अस्पताल में भर्ती हुए। जंगली सब्जियों के सेवन से लगातार हो रही घटनाओं को देख पुलिस ने लोगों को जागरूक करना शुरू कर दिया है। विशेष रूप से पहाड़ी जिलों में पुलिस ने गांव-गांव जाकर मुनादी अभियान शुरू किया है। इसके तहत पुलिस कर्मी लोगों से जंगली मशरूम और लिंगुड़ा के सेवन से बचने की अपील कर रहे हैं। आईजी कुमाऊं ने इसको लेकर सभी कप्तानों को निर्देश दिए हैं। विभिन्न रिसर्च पेपर्स में प्रकाशित शोध के अध्ययन में पाया है कि विश्वभर में पाए जाने वाले मशरूम में से केवल 18 फीसदी प्रजाति ही खाने योग्य होती हैं।
जहरीले मशरूम में अक्सर गहरे रंग के गिल्स होते हैं, जो छूने पर जल्दी काले पड़ जाते हैं। कुछ जहरीले मशरूमों में दूधिया रस निकलता है, जो कड़वा या जलन पैदा करने वाला होता है। कुछ जहरीले मशरूम चमकीले रंग के होते हैं, जैसे कि लाल, नारंगी, पीले और कुछ में सफेद या चमकदार धब्बे हो सकते हैं।
अपराध रोकने के साथ ही पुलिस की जिम्मेदारी गांव में बढ़ गई है। मानसून सीजन में जंगली मशरूम और लिंगुड़ा काफी मात्रा में हो रहा है। इसके सेवन से लोगों की मौत के मामले भी सामने आए हैं। लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिए मुनादी कराई जा रही है। रिद्धिम अग्रवाल, आईजी कुमाऊं।


